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शुक्रवार, 21 अगस्त 2020

अज्ञेय की कविता

अज्ञेय की कविताएँ :

1
दीपावली का एक दीप

दीपक हूँ, मस्तक पर मेरे अग्निशिखा है नाच रही-
यही सोच समझा था शायद आदर मेरा करें सभी।
किन्तु जल गया प्राण-सूत्र जब स्नेह नि:शेष हुआ-
बुझी ज्योति मेरे जीवन की शव से उठने लगा धुआँ

नहीं किसी के हृदय-पटल पर थी कृतज्ञता की रेखा
नहीं किसी की आँखों में आँसू तक भी मैं ने देखा!
मुझे विजित लख कर भी दर्शक नहीं मौन हो रहते हैं;
तिरस्कार, विद्रूप-भरे वे वचन मुझे आ कहते हैं:

'बना रखी थी हमने दीपों की सुन्दर ज्योतिर्माला-
रे कृतघ्न! तूने बुझ कर क्यों उसको खंडित कर डाला?'

अमृतसर जेल, अप्रैल, 1938

2
 : काल स्थिति - 2

लेकिन हम जिन की अपेक्षाएँ
अतीत पर केन्द्रित हो गयी हैं
और भविष्य ही जिन की मुख्य स्मृति हो गयी है
क्यों कि हम न जाने कब से भविष्य में जी रहे हैं-
हमारा क्या
क्या इसलिए हमरा वर्तमान
वही नहीं है जो नहीं है?

बर्कले (कैलिफ़ोर्निया), 31 अक्टूबर, 1969       

 3  : काल स्थिति - 1

जिस अतीत को मैं भूल गया हूँ वह
अतीत नहीं है क्यों कि वह
वर्तमान अतीत नहीं है।
जिस भविष्य से मुझे कोई अपेक्षा नहीं वह
भविष्य नहीं है क्यों कि वह
वर्तमान भविष्य नहीं है।
स्मृतिहीन, अपेक्षाहीन वर्तमान-
ऐसा वर्तमान क्या वर्तमान है?
वही क्या है?

बर्कले (कैलिफ़ोर्निया), 31 अक्टूबर, 1969

4
 निचले
हर शिखर पर
देवल:
ऊपर
निराकार
तुम
केवल...
 अज्ञेय द्वारा रचित  मात्र नौ शब्दों की कविता

साहित्य और समकालीन समाज

आज़,जैसी अफरा तफरी मची हुई है।उस संदर्भ में कुछ पुराने पन्नों पर उभरे हुए प्रासंगिक निबंध मिल जाते हैं, जो आज भी सोचने के लिए बाध्य करते हैं...