सीमा, असीम के साथ बंधी आती है। शब्द, संगीत की मर्यादा तय करते हैं 🤏। आज के हाशिए मे एक यही तस्वीर हासिल हुई है ,जिसे ऊपर ही टाँक दिया है। आप इसको शब्द की सीमा में बांध सकें तो बहुत अच्छा।
अपने परिवेश और अपनी परिस्थियों को साक्षी बनाकर जो कुछ भी अनुभूतियाँ होती हैं उनकी अभिव्यक्ति यहाँ हो जाती है । कभी आपबीती तो कभी जगबीती । कभी फुरसत से, कभी जल्दी में। कोशिश रहती है बातों- बातों में कुछ सरस, सरल, सुपाच्य सामग्री का जुगाड़ जुगाली के लिए किया जा सके ।
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साहित्य और समकालीन समाज
आज़,जैसी अफरा तफरी मची हुई है।उस संदर्भ में कुछ पुराने पन्नों पर उभरे हुए प्रासंगिक निबंध मिल जाते हैं, जो आज भी सोचने के लिए बाध्य करते हैं...
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आज़,जैसी अफरा तफरी मची हुई है।उस संदर्भ में कुछ पुराने पन्नों पर उभरे हुए प्रासंगिक निबंध मिल जाते हैं, जो आज भी सोचने के लिए बाध्य करते हैं...
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