शुक्रवार, 29 अप्रैल 2022

कोरोना काल: संघर्ष और उसके बाद

कोरोना से संबंधित पिछली बात-चीत मे 2020 में  virus से उपजी  इस महामारी, इससे जुड़ी आशंकाओं और डर के बारे मे कुछ कहा गया था।कोरोना काल 1 https://mkdubey210.blogspot.com/?m=1
अब आगे की बात। 
   यह दौर नई तरह की समस्याओं और उनको तुरंत सुलझाने का था। पूरा का पूरा विश्व अपनी पूरी ताक़त से सिर्फ COVID-19 को एड्रेस कर रहा था। भारत अपनी बड़ी भारी जनसंख्या और सीमित संसाधनों के कारण एक अलग स्थिति में था। जल्दी ही पूरा सरकारी अमला, हरक़त में लाया गया। बड़े और छोटे सभी कर्मचारी- अधिकारी वर्ग काम में लग गया या लगा दिया गया। इसी सब मे हमारा भी दिनचर्या सुधार कार्यक्रम भंग हुआ और प्रवासी यात्रियों को ढोने वाली trains से जुड़े दस्तावेजों के तैयार करने मे मुझे और मेरे कई साथियों की 🛤️रेलवे स्टेशन सुल्तानपुर पर तैनात किया गया। काम रिस्की लगता था और थकाने वाले समय तक चलता था। 👮पुलिस बल, चिकित्सा विभाग, राजस्व विभाग के अधिकारी, कर्मचारी भी मुस्तैद रहते थे। कंप्लैसेंसी की कोई गुंजाइश नहीं थी। बात ही ऐसी थी। उतरने वाले यात्रियों को देखकर गौतम बुद्ध के वैराग्य लेने की परिस्थिति याद आ गई। इतने कष्ट और फिर भी जीवन और इससे जुड़े काम धन्धे चलते रहते हैं। खैर, बुद्ध, राज- पुरुष थे, इसलिए वैरागी हो गए। कहा गया है की विवेकानंदजी भी अपने गुरु जी से  परिवार को हमेशा मोटा अनाज और मोटा वस्त्र मिलते रहने का वचन लेकर ही नरेन से विवेकानंद बने। यहाँ हमलोग
तो ठहरे साधारण संसारी प्राणी- भोलाराम- सो नून, तेल और लकड़ी का ही जुगाड़ करने में जी जान से लग गए। अब चाहे पढ़ाने का काम हो या covid-19 की रोकथाम मे जुड़ने का, अपने- अपने समय में दोनो ही जरूरी था। 
ऊपर दिए हुए कुछ चित्र जो कि इंटरनेट से साभार मिले हैं , उस दौर में कॉम्यूट करने, और उससे जुड़ी दिक्कतों को कुछ हद तक दिखा पा रहे हैं।एक चीज और है जो हमलोगों को ऐसे डरावने समय में भी डटे रहने की हिम्मत देती थी, वह है, साथियों के साथ लगे रहना और अपनी रोजी रोटी, मकान, दुकान छोड़कर वापस लौटे प्रवासियों का कष्ट, जिसके सामने हम लोग "रीलेटिवली" आराम से थे। रेलवे स्टेशन की इस पहली covid🦠कालीन ड्यूटी के बाद फिर पूरे साल ऐसी ड्यूटी करने की एक चेन बन गयी। कभी CMO ऑफिस, कभी COVID- 19 कंट्रोल रूम में और अक्सर मोहल्लों व गाँव-मजरों मे जाकर बीमारी के लक्षण वाले लोगों को पहचान कर उनकी रिपोर्ट संबंधित अधिकारियों को देना, जिससे उनके इलाज और quarantine करने की व्यवस्था हो सके। Quarntine centers की ड्यूटी भी की गई। गरज ये कि साल बीतते-बिताते covid-19 से जुड़ी सारी सावधानी, शब्दावली और त्रासदी समझ में आने लगी। ऐसी हर ड्यूटी अपने साथ एक नई दुनियादारी की समझ,खुद और लोगों के लिए एक नई जिम्मेदारी और संवेदना को बढ़ाती गई ,पर हाँ खतरा अभी तो मौजूद था ही।। 🙏🙏

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