शाम बीत गयी और अंधेरा होने लगा। चिंता अब रोशनी और पानी की हुई। गाँव के पैरोकार जुटे। बिजली महकमे के जिम्मेदार मौके पर लाए गए। काम शुरू होते- होते 7 बज गए। बीच- बीच में छोटे मोटे, कुछ पुराने और कुछ परिस्तिथि से उपजे विवाद, उभरते रहे। कुछ पुरनिया किस्म के लोग- उम्र और अनुभव से- शांत कराके काम आगे बढ़वाते रहे। लब्बो-लुबाब यह कि कर करा के, रात दो बजे बिजली आई। सोने लायक माहौल बना। फिर भी काफी काम रह गए जिसमें से कुछ अपने और अपनों के श्रम से पूरे हुए। इसी सब में रविवार बिता दिया गया। लगा कि अब भी प्रकृति के आगे हम बहुत बौने हैं। मालिक नहीं, इसके अनुचर हैं हम। अनुचर ही बने रहने मे कल्याण है। महादेव।। 🙏🙏
अपने परिवेश और अपनी परिस्थियों को साक्षी बनाकर जो कुछ भी अनुभूतियाँ होती हैं उनकी अभिव्यक्ति यहाँ हो जाती है । कभी आपबीती तो कभी जगबीती । कभी फुरसत से, कभी जल्दी में। कोशिश रहती है बातों- बातों में कुछ सरस, सरल, सुपाच्य सामग्री का जुगाड़ जुगाली के लिए किया जा सके ।
मंगलवार, 10 मई 2022
प्रकृति, पानी, बिजली और हम
3 मई से शुरू करके 8 मई तक सब कुछ बड़ा अस्त व्यस्त रहा। कुछ बहुत जरूरी व्यक्तिगत छोटी यात्राएँ और 5 मई की देर रात से होने वाली धुंआधार तूफानी बारिश। बड़ा नुकसान बारिश और हवाओं ने किया। हमारे गाँव- नुमा मुहल्ले में ही 3 पेड़ और 5 बिजली के खंभे उखड़ गए। आफत और रात भर तनाव कि सुबह सभी को अपने काम- धन्धे पर निकलना होगा। राम- राम कर रात बीत गयी। सुबह बाहर आने पर मंजर बहुत खराब। बिजली रात 3 बजे से गायब, कब तक आना है इसका पता नही, रास्ते सब बंद। हल्की बूँदें अब भी पड़ रही थीं ।
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साहित्य और समकालीन समाज
आज़,जैसी अफरा तफरी मची हुई है।उस संदर्भ में कुछ पुराने पन्नों पर उभरे हुए प्रासंगिक निबंध मिल जाते हैं, जो आज भी सोचने के लिए बाध्य करते हैं...
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आज़,जैसी अफरा तफरी मची हुई है।उस संदर्भ में कुछ पुराने पन्नों पर उभरे हुए प्रासंगिक निबंध मिल जाते हैं, जो आज भी सोचने के लिए बाध्य करते हैं...
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